हे,राजपूत अब तो नींद से जाग,तेरा वजूद खत्म हो रहा हैं
हे राजपूत अब तो नींद से जाग ,जब तेरा वजूद खत्म हो रहा हैं
जय भवानी ,
खम्मा घणी ,
हे राजपूत अब तो उठ जा ,
एक समय था जब तेरी छात्र धर्म की कदर थी,लेकिन अब नहीं ,
तेरी आन बान की पगड़ी पैरो में पड़ी,माँ बहिन,बेटी की गरिमा भी रो पड़ी । कियो हो गया कमजोर ऐ शेर.किया अब तेरा जलवा मरगया। मत कर दुसरो पर अत्याचार पर अब तो अपनी इज्जत को बचा ले।
कितना और गिरेगा अपनी नजर में.मत लज्जा अपनी माँ की कोख अब तू। उठ खड़ा होजा अपनी आन बान सां के लिये तू। जातियों से रखना मेल मिलाप तू पर बिकना मत बाजार में। अरे यदि इतना ही करना होता तो कियो फिरता घाटियों में राणा प्रताप ,कियो नहीं लिया महरान दुर्गा दास ने ,कियो काट अपना सिर हाडी ने दिया अपने पिया को।
अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भगोयो,जद राणा रो सोयो दुःख जाग पड़ियो।
कियो इण कागद रो उत्तर पीथल अकबर रो चाकर होते खातर भी राणा ने लिखियो ,मैं बाच बाच ने फिर बाचियो जद नयन करियो विश्वाश नहीं। मैं आज सुनी हू सुरजियो बदल्यिा री ओटा रहवेला,अरे जद छात्र धर्म ही मिट जासी तद कुन मान बचाशी।
सुधारो नर्सरी कोख में हे छत्राणियों जन्म दो अब शेरो ने ,कियो बंद हुगा जलमना राणा प्रताप ,सांगा ,हमीर,दुर्गा आशकरण रा।
बन जा एक भारा होजा तैयार अपने हक़ को लेने को.
वकत रहते जग जा नहीं तो चिड़िया चुग जाएँगी खेत। आपस में लड़ना छोड़ दो.वकत की नजाकत को समझो आज संघटित हैं तो सबकुछ हैं हम आज आपस में लड़ रहे हैं तो ज़माने से क्या सामना करोगो। अपने आप को पहचानें मे किस कुल का किस समाज का हिसा हूँ। मेरा क्या इतिहास रहा हैं।
कर्नल टॉड ने जो कहा वह सही कहा "मतिरो की पोटली और शेरो के झुण्ड नहीं होते "
हमें अब इस पंक्ति को बदलना होगा। हमें एक होना होगा।
खान पान पर अंकुशरखना होगा।
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