Saturday 30 July 2016

राजस्थान राजपूत परिषद् मुम्बई की नव कार्यकारणी गठन 2016

                राजस्थान राजपूत परिषद् मुम्बई की नव कार्यकारणी गठन 2016
 जय राजपुताना,
 सभी राजपूत भाइयो को जय माता जी की,
       राजस्थान राजपूत परिषद् मुम्बई की नई कार्यकारणी मीटिंग कल 31  जुलाई 2016 रविवार को ठाणे -घोडबंदर रोड पेट्रोल पम्प  के सामने काजुपाड़ा पर जहाँ समाज स्वयं का भूखंड हैं  पर होगी। सभी सरदारो से पधारने की अप्पिल।

Wednesday 20 July 2016

बात छोटी पर हैं पते की

जय माता जी की,

               कहते हैं की किसी नै इज्जत कमाई इस लिय हम गर्व से कहते हैं की मैं तो हराजपूत हूँ। हमने ऐसा कोई काम ही नहीं किया जिस से लोग हमारी इज्जत करे। पहले के राजपूतो की छवि से हमारा जीवन चल रहा हैं
बरसात की एक रात का वो वाकया मुझे आज भी याद हैं।
             मैं मेरे रिस्तेदार के गांव जा रहा था। लेकिन संयोग ऐसा हुआ की। मैं जिस बस में बैठा वो बस घूमते घूमते रात के ११ बजे गॉव पहुंची। रात अँधेरी थी। मैं अंजान था मुझे अभी लगभग तीन चार किलोमीटर और चलना था। तभी मेरे ठीक पीछे एक परिवार जो की पति पत्नी और एक छोटा बच्चा।किसी नै आकर पूछा कहाँ जाओगे। चलो हम छोड़ देंगे। हम भी उसी रस्ते जा रहे हैं। लेकिन उन्होंने मना कर दिया।तभी मेरे कानो में एक शब्द सुनाई दिया। उनको पूछो शायद राजपूत हैं।


                                   पति ने मुझे पूछा आप राजपूत हो। मैंने कहा हा.क्या हुआ। पति बोल कुछ नहीं हमें भी गॉव जाना हैं। लेकिन अँधेरा हैं और रास्ता सुनसान। तो मैने कहा वो दो तीन लोग गए थे न। पति बोला नहीं।चलो हम आप के साथ चल देंगे ,म्हणे पूछा ऐसा क्यों तो पत्नी बोली आप तो राजपूत हो।
                                  म्हणे उपर अँधेरे आकाश में देख कर भगवान  को धन्यवाद दिया की मुझे राजपूत के घर जन्म मिला ,जिस पर आज भी जनता विश्वास करती हैं। उस दिन मुझे अपने राजपूत होने पर फकर था।
 यह हैं राजपूत की परिभाषा मैंने कुछ नहीं किया था लेकिन पूर्वजो की इज्जत का मुझे भी गर्व था
बात छोटी थी लेकिन असर बड़ा  था।
             
                                   जय राजपुताना , जय हिन्द ,  जय भारत।
                                                                                                         मोती सिंह राठौड़ (जोइंनतरा )
                                                                                                                       लेखक

त्याग का दूसरा नाम राजपूत



 राजपूत समाज के सभी महानुभवों को मेरी तरफ से जय माताजी जी ,


                त्याग का दूसरा नाम राजपूत हैं ,त्याग ही वो हत्यार हैं। जो राजपूत की पहचान हैं। जितना आदमी आराम तलब होता हैं उतना कायर होता जाता हैं। पन्ना धाय नै अपना बेटा कुर्बान नहीं क्या होता तो क्या पन्ना धाय का इतनी इज्जत होती,नहीं कारन अपने लिये तो सभी जीते हैं। औरो के लिये जो जियै तभी तो जब सिपाही शहीद होता हैं तो उसको इज्जत दी जाती हैं। इन सभी बातो से राजपूत समाज का नाता रहा हैं।
           जब लोग अपने घरों में सुरक्षित सो रहे हैं तभी एक रक्षक किसी दुश्मन से झुंझ रहा होता हैं। सभी भर पेट खाना खाकर सो जाते हैं तब एक रक्षक भूखा किसी की रक्षा कर रहा होता हैं। जब लोग अपने घरों में दिवाली मनाते हैं तब एक रक्षक गोलियों का सामना करता हैं। अर्थात इज्जत और सम्मान तभी मिलता हैं। जब आप रक्षक बनो। रक्षा करना तो राजपूत की शान समझी जाई ती हैं।
             राजपूत तो धरती पर आया ही रक्षा के लिये,राजपूत से किसी अधर्म का काम,निर्बल पर अत्याचार और अबला पर अत्याचार नहीं देखा जाता। मेरा मनना हैं राजपूत दुनिया में सिर्फ दूसरों के दुःख अपने सिरे लेने के लिये आता हैं। तभी तो राणा प्रताप और शिवाजी अंत तक जनता के लिये झुंझ ते रहे।
           
                   आज राजपूत अपने रस्ते से भटक चूका हैं कारण अपने समाज के लिये नहीं सोच कर सुबह से से शाम तक केवल पेटपूर्ति के बारे में सोचना तो फिर आम जनता आपकी इजत क्यों करेंगे। जब आप भी उनकी तरह जिंदगी जीने का काम कर रहे हो तो क्या फर्क हैं।  खान पान पर ध्यान नहीं देना। शादियों में खुले आम शराब और मांश खाना जिसका नकारात्मक प्रभाव छत्तीस जातियों पर पड़ता। अगर वास्तव में शराब और मांस खाना राजपूतो का काम होता तो महाराणा प्रताप और शिवाजी नै तो कभी नहीं खाया। और हाँ  इन महापुरुषों नै वो सभी काम किए जिनसे राजपूत समाज की मान मर्यादा बढे ,तो अगर मांश और मदीरा राजपूतो का खान पान होता तो राजपूत समाज के सभी महापुरुष जरूर खाते और पीते। लेकिन ऐसा नहीं हैं

                         खान पान ही वो सीढ़ी हैं जहां से समाज के सुधार का रास्ता शुरू होता हैं। पहनावा रहन सहन का राजपूत समाज मे विशेष महत्व हैं। क्यों की सभी समाज का अग्रणी हैं। तो राजपूत समाज को तो सही चलना होगा तभी लोग आप को इज्जत देंगे।
                    उन सभी चीजों का त्याग जरूरी हैं जिससे राजपूत समाज को निचा देखना पड़ता हैं। क्या खान पान से ही  राजपूत समाज अमर होगा ,अगर ऐसा होता तो समाज के महापुरुष कभी पीछे नहीं रहते। लेकिन उनको पता था की ये सब समाज की तरक्की और इज्जत के लिए ठीक नहीं। सो उन्होंने नहीं खाया। राजपूत समाज के पतन का कारन केवल खान पान हैं। अब जो गलत हैं वो आपके सामने हैं। अगर आप को लगता हैं की इसका त्याग आप कर सकते हो तो वो आप पर हैं
                              क्यों की मांस और मदिरा आदमी की सोच बदल देती हैं राक्षशी खान पान के कारण राजपूत रक्षक नहीं भक्षक बन जाता हैं और भक्षक कही सुधरक नहीं होता या महापुरुष नहीं होता। तो ये आप पर निर्भर करता हैं की समाज की शादी विवहा और अन्य कामो में शराब और मांस बंद होजाये।

                                           जय राजपुताना ,जय हिन्द ,जय भारत
                                                                                     
     
                                                                                मोती सिंह राठौड़ (जोइंनतरा )
                                                                                           लेखक














राजपूत के घर जन्म क्यों मिला ?



जय माताजी की ,
                          इन प्रश्नों को पढ़ो और अपने अंदर एक राजपूत ढूंढो


 कभी आपने सोचा है की आप को राजपूत के घर जन्म क्यों  मिला ?
 कभी आपने सोचा हैं की राजपूत का जन्म मिला हैं तो मेरा क्या उत्तरदाईत्व हैं?
कभी आपने सोचा हैं की वास्तव में राजपूत क्या हैं ?
कभी आपने सोचा की राजपूत की मर्यादाएं क्या हैं ?
कभी आपने सोचा राजपूत शब्द की परिभाषा क्या हैं ?
कभी आपने सोचा की राजपूत के घरजन्म लेना  देवता क्यों पसंद करते हैं?
कभी आपने सोचा की छत्तीस जाति की ढाल कैसे हैं राजपूत ?
कभी आपने सोचा की क्यों क्यों राजपूत आज बेइज्जत हैं ?
कभी आपने सोचा की राजपूत का खान पान क्या हैं ?
कभी आपने सोचा की राजपूत मांस क्यों नहीं खाता ?
कभी आप नै सोचा हैं की राजपूत शराब क्यों नहीं पीता ?
कभी आपने सोचा की राजपूत को लोग क्या मानते हैं ?
     ऐसे कई प्रशनो के उत्तर हमें देने हैं क्यों की हम राजपूत हैं। लोग आज भी जवाब उससे मांगते हैं जो सबसे बड़ा या जिम्मेवार हैं। अगर हमें कोई राजपूत कहे तो हमें राजपूत शब्द की परिभाषा देनी होगी।
          क्यों की राजपूत जो बने वो जंगलों में घूमे लेकिन नाम आज भी अमर हैं। जहां आज हम बसों और करो से जा कर थक जाते हैं वहां घोड़ो की टापों की गूंज हैं और महीनो चलने के बाद भी मजाल हैं की थोड़ी भी थकान आजए।

                        राजपूत की सभी धर्मो में एक ही छवि हैं और वो हैं रक्षक अर्थात सर कट जाएगा लेकिन जब तक हम जिन्दा नारी ,अबला ,गौ गरीब पर आंच नहीं आएगी। मेरा मानना हैं की अगर ऐसा राजपूत हैं तो छत्तीस कौम आज भी उसकी इज्जत करती हैं

जो जीभ के शौकीन हैं अर्थात खाने और पीने के शौकीन  उनको कभी भी गुलाम बनाया जा सकता हैं जैसे पशु क्यों की वो खाने अर्थात सिर्फ चारे का शौकीन हैं। जो आचरण पर चले वो अमर होगये, जो चले रक्षक बनकर दुनिया में महसूर होगये। जीना तो पशु का भी हैं लेकिन राणा प्रताप बनकर जीना भी अपने आप में एक जलजला हैं।
अगर डाल दी शराब अपने शरीर में फिर क्या रक्षक बनोगे,कदम खुद के ठिकाने नहीं,किसी की क्या रक्षा करोगे। अगर बनकर राजपूत इज्जत कामना हैं शौक आपका तो बन जाओ किसी मजबूर का कन्धा।देखना तेरी तस्वीर उसके दिल और घर की दीवार पर होगी। बन राणा प्रताप,राणा सांगा ,वीर दुर्गा दास,शिवाजी तेरी तस्वीर हर चौराहे पर होगी।

                                            DEFINITION OF RAJPUT WORD
                               
R                 -                                        RESPONSIBLE     (जिम्मेवार )

A                 -                                        ALL                                 (सभी )

J                   -                                       JUSTICE                        (न्याय )

P                   -                                        PROTECTION            (सुरक्षा )

U                   -                                       UNDERSTAND            (समझ )

T                   -                                         TRUTH                         (सत्य )


                                          जय राजपुताना ,जय हिन्द ,जय भारत
                                                                                                       मोती सिंह राठौड़ (जोइंनतरा )
                                                                                                                   लेखक
                             

जय राजपुताना




जयमाता जी की ,
  मेरा नाम मोती सिंह राठौड़ हैं। मैं जोधपुर जिले की बावड़ी तहसील में जोइंतरा का रहने वाला हूँ। मैं राजपूत हूँ इस पर मुझे गर्व हैं लेकिन समाज की स्थिति और बिखराव ,ईर्ष्या,एक दूसरे को गिराने की ,समाज के बनते काम को बिगाड़ने की राजनीती ,जो समाज कभी धरती तोलता था वो आज पेट पालने और जीवन गुजारने तक ही सीमित हो गया।  घूम फ्हिर कर एक ही शब्द हैं और वो समाज का हर सज्जन जानता हैं। लेकिन करे तो क्या करे।,कैसे समाज को एक किया जाये ,कैसे समाज को आगे बढ़ाया जाये ,कैसे समाज की आर्थिक स्थति पटरी पर लाई जाये।


  समाज में  पहले भी कई बड़े बुजुर्ग ऊंचे पदों पर  राजा महाराजा और ठाकुरो के पदों पर रहे हैं और आज भी हैं। इस जाति का अपना वजूद हैं और था। देवताओ ने भी इस जाति में जन्म लेना सही समझा। खान पान,पहनावों, रहन-सहन, अदब और इज्जत का दायरा बड़ा उच्च रहा हैं और आज भी हैं लेकिन। .... वकत नै राजपूत को आज निचे के पायदान पर खड़ा कर दिया हैं। क्या कारन हैं जब भी घर में या परिवार में कोई काम गलत होता हैं तो हम सीधा उसको करने वाले या करने के तरीके पर जाते हैं। तो फ्हिर समाज आज जिस दौर से गुजर रहा हैं उसका भी कोई कारण हो सकता हैं।


                        जब भी कोई पौधा या रोपण किया जाता हैं तो पहले उसको लगाने का विचार किया जाता हैं। पौधा लगने के बाद पछताने से कोई फायदा नहीं। मेरा व्हाट्सप्प ग्रुप हैं। मैं समाज मैं आरहे उब्बाल को रोज देख रहा हूँ और व्हाट्सप्प के जरिये काफी पढता भी हूँ। मैंने एक बात नोट की हैं की जब भी समाज आगे कदम बढ़ाता हैं तभी चारो तरफ से ताने और फ़ितरतों की बाढ़ आ जाती हैं।



                   मेरा मानना हैं की इस समाज में पहले संत पैदा होते थे लेकिन आज तो पैदा होने वाले हर बच्चे को गृहस्थी बनना हैं। साधु संत तो बेकार और आवारा लोगो का जीवन हैं। इस लिये समाज में संत पैदा होने बंद हो रहे हैं। जिस समाज में संत पैदा बंद होंगे और वासना के शिकार लोग पैदा होंगे वो समाज एक दिन काल का  ग्रास पका बनेगा। जब तक हर गांव और तहसील जिले में समाज में संत नहीं होंगे तो समाज को रास्ता कौन देखिएगा।
                        जैसे कुछ समाज आज की तारीख में देखे तो जैन जिनके चारो तरफ जैन समाज के आमिर आमिर लोग,जवान लड़के लड़कियां जैन साध्वियां बन रहे हैं। जैन समाज अपने संतो की कितनी इज्जत और परवाह करता हैं। यह बताने की जरुरत ही नहीं। एक समय था जब सभी धर्मो के संत साधु राजपूत जाति से निकलते थे। जैनो के सभी तीर्थांकर राजपूत थे। लेकिन आज तो कुछ गिने चुने राजपूत वंश के साधु संत हैं ,क्यों


                       आज हमें सोचना होगा क्यों समाज में अन्य जातियों के साधु संत जाएदा हो रहे हैं लेकिन राजपूत समाज के कम पड़ रहे हैं। बड़े बड़े राजा महराजाओं के ऊपर हाथ साधु संतो का था। दिशा संतो की और राज राजाओ का। आज राजपूत बदनाम बर्बादी,आपसी रंजिश,शादी के लेनदेन,शराब,मांस ,और  एक दूसरे को गिराने की प्रवर्ति चर्म पर हैं तो फिर समाज का क्या होगा,समाज किस दिशा में जाएगा ,यह सब प्रश्न हमें कचोट रहे हैं।
    अगर समाज में महाराणा प्रताप ,शिवाजी ,दुर्गा दास ,राणा हमीर ,हाड़ी रानी,रानी पद्मनी का जौहर आज देखना हैं तो हमें राजपूत समाज के नियम मानने होंगे। खान पान और रजपूती गुणों का निखारना होगा। राजपूत जानता के विश्वास को जितने से बनता हैं। पहले भी आम जनता ही राजा और ठाकुर बनाती थी। लेकिन कुछ समाज की भी गलतियां हैं जो समाज को खा रही हैं।


                     समाज के दिन इतने कमजोर आने का कारन समाज में लड़कियों को घर छुड़ाने के लिए दहेज़ और टिका देना पड़ता हैं। जो लड़की मोल भाव से आप के घर आ रही हैं। वो कभी भी दिल और आत्मा से आप  नहीं हो सकती ,उस लड़की के सामने उसके मजबूर माँ बाप का चेहरा हमेशा आता हैं जब उसको इस घर की बहु बनने के लिए चुकाया हैं। सबसे पहले दहेज़ बंद करना होगा। जिससे लड़की को सम्मान मिल सके। क्यों की जब भी मुगलो नै हमला क्या था तो राजपूत छत्राणियो नै भी अपनी बलि और जौहर पर जिन्दा बैठी हैं। केवल राजपूत मर्द ही नहीं राजपूत नारी भी समाज के उथान में बराबर की भागीदार हैं। तो  समाज सुधार में सबसे पहले दहेज़ प्रथा बंद करना होगा।
                           समाज सुधार में जो दूसरी कड़ी हैं वो जब भी बहन बेटी,या राजपूत नारी के गर्भ में जो बच्चा तीन महीने का होगया हैं। उस बहन बेटी और राजपूत नारी को घर में स्वछ और सुन्दर माहौल मिलना चाहिए। क्यों की यह तो महाभारत में भी बताया गया हैं की जब अर्जुंन अपनी पत्नी को चक्रव्ह्य की लड़ाई की कहानी सुना रहा होता हैं तब पत्नी चक्रव्ह्य की आधी कहानी में सो जाती हैं और गर्भ में अभिमन्यु आधी कहानी ही सुन पाता हैं और आधी कहानी के बाद माँ के सोने से गर्भ में अभिमन्यु भी सो जाता हैं। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए।


                              समाज में संत पुत्रों का सम्मान किया जावे और समाज में जब कोई संत बनना चाहे तो सहर्ष स्वीकार करे। जिस से समाज को महान आत्माएं मिल सके। जो समाज की दिशा और दिशा दे सके।
                             समाज को नशा मुक्त करना होगा ,जिसको जितना हो सके नशा मुक्ति की कशिश करनी होगी। सरकार भी कहती हैं की शुद्ध खून में जब नशा जाता हैं और खून में मिल जाता हैं तो वो नशा करता की अगली पढ़ी यानि नशा करता की संतान जो पैदा होती हैं। जब कोई कहता हैं क्या करेगा समाज तो उसको समझाना की अगर आप समाज को निचा दिखाने वाला काम करोगे तो समाज सबकुछ कर सकता हैं। अर्थात जो भी समाज को निचा दिखाने का काम करे तो उस पर लगाम लगाना जरुरी हैं।
                           शिक्षा समाज की आँख होती हैं केवल नौकरी के लिये नहीं पढ़ना जीवन का अभिन अंग हैं। क्यों की बिना शिक्षा तो आप समाज में ढोर हो अर्थात पशु हो पहले तो बुजर्गो के पास शीक्षा नहीं थी लेकिन आज तो हैं इस लिये यदि कोई व्यापारी भी हो या किसान पढ़ना जरुरी हैं।
                          सबसे बड़ी बात समाज में इस प्रकार के नियम बने की जहां भी राजपूत भाई निचे गिर रहा हैं तो समाज मिलकर उसको सहारा दे जिससे समाज पंगु और अपंग नहीं होगा। आप यह मत सोचो की वो राजपूत तो बिहार या भीलवाड़ा या मध्य परदेश को हैं लेकिन आप यह क्यों नहीं सोचते की नासूर शरीर के किसी भी हिसै में हो बीमार पूरा शरीर होता हैं।
                          सभी समाज में अपनी छवि साफ सुथरी रखो,दूसरे समाज भी सोचे की वास्तव में राजपूत हैं।

अगले लेख में और कुछ समाज के चरणों में मेरी भेंट। ................
                                                        जय  राजपुताना ,जय हिन्द जय भारत
                                                                                                            मोती  सिंह राठौड़ (जोइंनतरा) 


                                                                                                                        लेखक

Thursday 4 February 2016

जानकारी और संपर्क



मोती सिंह राठौड़
9665151996
ईमेल : motisinghrathore2@gmail.com

ग्रन्थ हमारा गर्व हैं

       राजपूत समाज ,
 रामायण  हमारा गर्व हैं ,महापुरुषों ने इस समाज में जन्म लिया,दुनिया में यह समाज आदर्श का दूसरा नाम था औए हैं  ग्रन्थ हमारा गर्व हैं
           हर युग में जब जब गरीबो कमजोरो पर जुलम बढ़ता हैं। चारो तरफ अफरा तफरी बढ़ जाती हैं तब हीरो का जन्म होता हैं। हीरो कभी अपने लिये नहीं सोचता। अपने मुँह का निवाला दूसरे को दे दे। खुद तकलीफ देख कर दुसरो के दुःख दूर करे,बिना किसी स्वार्थ लोगो इस जहाँ की सेवा में अपना सब कुछ लगा दे ते हैं।

                      धरती पहले पहले जाती,धर्म नहीं था सब का एक ही धरम था इंसान।जो की आज कही पीछे छूट गया हैं। उस दौर में खेती ही जीवन का आधार था। जानवर और इंसानो के बीच कोई तीसरा नहीं था। बैलो से खेती और बैलगाड़ी से सफर अमूमन औरते बैलगाड़ी से सफर करती थी ,मर्द तो पैदल ही निकल पड़ते थे।
                        समय के साथ धरती बदलती गई और समय का चक्र आगे बढ़ता रहा।कई युग युगो के बाद धरती पर जुल्म बढ़ गया तब चारो तरफ एक ही आवाज़ हर गरीब और कमजोर,साधु संत  की एक आवाज निकल रही थी।  हे ऊपर वाले अब तो आजा। तब धरती पर राम   कृष्ण ,मुहमद ,ईशा ने धरती पर जन्म लिया। अब देखने वाली बात यह हैं की ऊपर तीन लोग का साम्राज्य छोड़ कर क्यों राजा दशरथ के पुत्र बने। काहे जेल में जन्म लिया कृष्ण नै। क्यों ईशा गरीब के घर पैदा हुए।
                       इसका कारण हैं हीरोज (महापुरषो को चमकदमक नहीं ऐश आराम नहीं जनता के दुखो को समझना हैं तभी तो उनको पता चलेगा की दुःख ऐसा होता। मैं यह सब लिख रहा हूँ क्यों की आज चारो तरफ अफरा तफरी सिर्फ अम्मीर बनाने की लगी हैं मैं यह नहीं कहता की धन नहीं होना चाहिए लेकिन इस कदर भी नहीं की सभी रिस्तो का मोल इंसानियत का मोल सिर्फ रुपयो व धन के आगे कुछ नहीं।
                 
                 राम जो की दशरथ नंदन विष्णु अवतारी लेकिन  कितने सरल सब का दिल जीतने वाले और साथ में सीता भाई लक्ष्मण भरत ,शत्रुघ्न और तीन तीन माताएँ पिता दशरथ। अर्थात कितने सुखी कितने अमीर सबकुछ था राम के पास। राम को सब कुछ बिना कुछ किये जन्म ते ही मिल गई। क्या कमी थी राम को। लेकिन राम के लिये यह सब सुख बेकार था।
                राम अयोध्या की गलियों में घूमते थे लोग कहते राजकुमार होकर भी हमारे बीच घूम रहे हैं।
 राम उस युग से लेकर आज तक हमारे हीरो हैं कारण सुख छोड़ कर जंगलो में भटके,कही केवट तो कही सबरी के बेर,तो कही अहियल्या को पत्थर से नारी बनाना,कही जटाऊ का मोक्ष कही हनुमान की दोस्त भक्ति कही सुग्रीव को राज दिलाना ,कही तड़का वध कही रावण का वध और सुग्रीव को राज देना। खुद नै कभी कुछ नहीं माँगा। चाहते तो खुद रावण का वध अकेले ही कर सकते थे लेकिन पप्रकर्ति के सामने नत मस्तक कभी नियम नहीं तोडा। अगर हीरो ही नियम तोड़ेंगे तो फिर इस प्रकर्ति को कौन बचाएगा।
                दोस्तों,
                         आज मैं रामायण के कुछ पहलू आपको बताऊंगा ,जिसके कारन हर हिंदू को रामायण अपने घर पर रखनी चाहिये।  रामायण अपने आप में पूरी प्रकर्ति हैं रामायण के पात्र जिस प्रकार नाम और काम हैं उसको समझाना जरुरी हैं। राम ,सीता लक्ष्मण ,हनुमान ,भरत ,सबरी,रावण ,जटाऊ ,सग्रीव,मारीच ,तड़का ,सूर्पनखा ,बाली,जामवंत व अन्य सभी पात्रो की अपनी कहानी हैं

                                  हनुमान क्या  हैं 

कलयुग  में सिर्फ हनुमान की चलती हैं ,और जो उनके मनपसंद का खाता और पीता हैं उनपर होते हैं महरबान 


रामायण में अगर हनुमान नहीं होते तो रामायण सूनी होती। जंगल में सीता हरण के बाद हनुमान ही राम के रखवाले थे। जो सर्ष्टि के रखवाले उनके रख रखवाले हनुमान। जब सीता की खोज का बीड़ा घुमाया जाता हैं तब शांति से हनुमान मुस्कराते हुए उस बीड़े को देख रहे हैं  जामवंत सभा को कहते हैं की यह बीड़ा तो हनुमान ही उठा सकते हैं। दूसरा कोई नहीं। हनुमान कुछ सोचते हैं। .सभा में सन्नाटा,तभी,क्या हुआ हनुमान तभी,जामवंत लो हनुमान अब तुम ही हो जो राम का काम पूरा कर सकते हो। हनुमान उस बीड़े  को उठाते हैं और आप और मैं सब को जानते  हैं की हनुमान नैं उस बीडे की लाज रखी बल्कि सीता का पता लगा कर रावण की लंका में आग लगा दे ,


अमेरिका के राष्ट्रपति और महाभारत में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर थे हनुमान ,श्री कृष्ण मानते थे हनुमान को



                 जब लक्ष्मण को शक्ति लगी तब भी सब की नजर हनुमान पर थी ,सूरज उगने से पहले जड़ी बूंटी लाना क्या मजाक था लेकिन हनुमान ने करदिया। जब भरत ने राम से कहा था की 14 बर्षो के बाद अगर एक भी दिन जायदा होगया तो आपका भरत अपने प्राण आग में जलकर त्याग देगा। लंका विजय के बाद राम के मन में अब एक ही चिंता थी की अगर समय पर नहीं पहुंचा तो भरत प्राण त्याग देगा। लेकिन ऐसा कोई विमान नहीं जिस से सूर्यास्त से पहले अयोध्या पहुंचा जाये। तब जामवंत राम की अंतरमन की आवाज सुनकर राम को कहतें हैं की हनुमान हैं ना विमान से भी सौ गुणा तेज और हनुमान राम को अयोधिया पहुँचते हैं। 
                    ऐसे कितने कार्य हनुमान ने किए। बोलो हनुमान की जय ,पवन पुत्र की जय। 

   इसी प्रकार आप को रामायण के हर किरदार की खूबियों को पढ़ने को मिलेगा 
                                                               धन्यवाद